चाहत का सिलसिला हैं ,
उसकी तस्वीर अपने मन में लिए,
ये क्यों कहता हूँ,?
कब देखूंगा उसके मन में तस्वीर अपनी ,
ये क्यों सोचता हूँ ?
चाहत का ये वो सिलसिला हैं ,
जो ताउम्र चलता रहेगा ॥
यही तो वो सफर है,
जो ना खत्म हुआ है॥
आज भी मेरे
मन - जीवन बसा हुआ है॥
याचिका 786
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